Fri. Dec 27th, 2024

भाषा कला संस्कृति अकादमी द्वारा संचालित साहित्य कला संवाद कोरोना काल में कला साहित्य व भाषा से जुडे़ लोगों के लिए अत्यंत प्रभावी मंच बन कर उभरा है। वर्चुअल तकनीक के द्वारा इसमें अभी तक लगभग 169 कड़ियों के माध्यम से प्रदेश, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों, लेखकों से संवाद कायम किया गया, जिसमें विभिन्न कला विधाओं का समावेश रहा।
इस संवाद की 169वीं कड़ी के तहत कोटगढ़ निवासी विपिन भारद्वाज जिन्होंने कोटगढ़ सरीखे गांव से निकलकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली से रंगमंच में विधिवत शिक्षा प्राप्त कर न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन, नेपाल, बंगलादेश व अन्य देशों में रंगमंच के विस्तार के लिए कार्य किया। देश के विभिन्न संस्थानों मंे नाट्य विधा प्रशिक्षण प्रदान किया।
अपने संवाद में उन्होंने रंगमंच की चुनौतियों, विभिन्न संकल्पनाओं तथा प्रतिबद्धताओं के संबंध में विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान विभिन्न व्यवसायों व कार्यों से जुड़े लोगों के लिए कोई न कोई योजना बनाकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ किया जा रहा था किंतु कलाकार एक ऐसा वर्ग रहा जिसके लिए सम्भवत कोई योजना सार्थक न हुई। बावजूद इन विषम परिस्थितियों के भी कलाकार हतोत्साहित नहीं हुआ और एक नए सृजन और संचार के साथ परिस्थितियों का सामना करते हुए पुनः रंगमंच के कार्यों में लीन हो गया। रंगमंच के प्रति समर्पण एवं प्रतिबद्धता ही एक रंगकर्मी की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने कहा कि रंगमंच को अपनाने के लिए हमें गहन विशलेषण व चिंतन कर प्रारम्भिक रूप में अपनी प्राथमिकताएं करनी होगी तभी रंगमंच को अपने जीवन में व्यवसाय के रूप में अपनाया जाना आवश्यक है। उन्होंने अभिनय के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता को आवश्यक बताते हुए अपने अनुभव को सांझा करते हुए बताया कि शिमला नगर से नाटक करके राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नाटक पढ़ने व करने पर ही इस भेद को जान पाया। नाट्य विधा में एक नाटक को पढ़ कर याद कर उसका मंचन कर देना ही इतिश्री नहीं है अपितु इस मौलिकता के पीछे और भी कई पहलु है, जिनको रंगकर्मी को जानना अति आवश्यक है। विभिन्न प्रदेशों अथवा देशों में रंगमंच की शैली तथा रंगमंच की विभिन्न अन्य पद्धतियों को प्रशिक्षण के माध्यम से ही जाना जा सकता है। अभिनय और रंगमंच अपने आप में एक सम्पूर्ण विषय है, जिसे प्रशिक्षण के माध्यम से ही जाना जा सकता है।
विख्यात प्रशिक्षण संस्थानों से रंगमंच अथवा अभिनय का प्रशिक्षण प्राप्त कर व्यक्ति द्वारा अपने गृह क्षेत्र में आकर कार्य न करने की विवश्ता का मूल कारण केवल रोटी की उपलब्धता की अनिश्चितता ही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की सांस्कृतिक नीति का निर्माण करते हुए हमें कलाकारों के भविष्य के लिए रंगमंच को विषय के रूप में शिक्षण संस्थानों मंे आरम्भ करना होगा। हिमाचल विश्वविद्यालय में रंगमंच विषय आरम्भ हो ताकि प्रदेश में इस विधा से जुड़ा रंगकर्मी दिल्ली, बम्बई या अन्य जगहों पर न जाकर प्रदेश में ही रंगमंच की शिक्षा ग्रहण कर सके।
उन्होंने नई शिक्षा नीति के लिए नाटक को जोड़ने के प्रति केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मानव के बौद्धिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और नैतिक सभी क्षमताओं को एकीकृत तौर पर विकसित करने का लक्ष्य नई शिक्षा नीति में रखा गया है, जिसमें निश्चित तौर पर संगीत, दर्शन, कला, नृत्य व मुख्य रूप से रंगमंच उच्च शिक्षण संस्थानों के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, जिससे कला कर्म से जुड़े लोगों को शिक्षा के साथ-साथ रोजगार भी उपलब्ध होगा।
उन्होंने रंगमंच के भविष्य के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। जब प्रेक्षागृह नहीं थे तब भी व्यापक स्तर पर रंगमंच होता था। रंगमंच के प्रसार के लिए प्रदेश में निरंतर कार्यशालाओं का किया जाना आवश्यक है, जिसके लिए प्रदेश सरकार को सहयोग प्रदान करना होगा। उन्होंने बताया कि रंगमंच के इस स्तर को बनाए के लिए सभी रंगकर्मियों को भी व्यक्तिगत तौर पर प्रयास करने होंगे। कलाक्रम से जुड़े जिन लोगों को सम्मान मिला है उन्हें स्तरहीन कार्य करने से बचना होगा। उन्होंने कहा कि साधारण कार्य को भी सही रूप में किया जाए वो भी एक शिल्प है। रंगमंच की भी यही मांग रंगकर्मी से रहती है।
हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के सचिव डाॅ. कर्म सिंह ने संवाद कार्यक्रम में चर्चा करते हुए विपिन भारद्वाज से उनके कोटगढ़ से लेकर शिमला रंगकर्म की यात्रा तथा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रशिक्षण के संस्मरणों तथा प्रशिक्षण के उपरांत के संघर्ष के सम्पूर्ण सफर को अत्यंत प्रभावी रूप से संवाद कायम किया। उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर प्रदेश की सांस्कृतिक नीति में विपिन भारद्वाज अथवा अन्य कलाविद्धों द्वारा दिए गए सुझावों व परामर्श को सांस्कृतिक नीति में शामिल करने के लिए सरकार एवं विभाग को प्रस्तुत करेंगे ताकि नीति के समग्र प्रभाव से कलाकारों को लाभ मिल सके।