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देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल को प्राचीन काल से ही अपनी असीम शांति और अनुपम सौंदर्य के लिए जाना जाता है। हिमाच्छादित पर्वतों, कलकल बहती नदियों और भिन्न-भिन्न प्रकार की असंख्य वनस्पितयों के वन देवभूमि में परम सत्य को खोजने आए ऋषि-मुनियांे को आमंत्रित करते रहे हैं। भारत की सनातन संस्कृति को पल्लवित एवं पोषित करने वाले ऋषियों ने हिमाचल की वादियों में जिन स्थानों को अपनी तपस्थली बनाया वह सभी स्थान समय के साथ जन आस्था का केंद्र बने।
शिव और शक्ति की इस भूमि को आज भी देश-विदेश से पर्यटक न केवल नमन करने पहुंचते हैं अपितु यहां की कोलाहल से दूर की शांति में रूकने का प्रयास भी करते हैं। प्रदेश के औद्योगिक रूप से स्थापित सोलन जिला में धार्मिक आस्था का ऐसा ही केंद्र बिंदु हंै माता शूलिनी।
सोलन शब्द की उत्पत्ति मां शूलिनी के नाम से ही हुई है। मां शूलिनी सोलन की अधिष्ठात्री देवी हैं। देवी भागवत पुराण में मां गायत्री के 1008 नामों में भगवती शूलिनी का नाम भी आता है-
शरावती शरानन्दा शरज्योत्सना शुभानना।
शरभा शूलिनी शुद्धा शबरी शुकवाहना।।
शाब्दिक दृष्टि से शूलिनी शब्द का अर्थ दुर्गा माना गया है। इस प्रकार मां शूलिनी का देवी रूप सर्वमान्य, सर्वजन्य एवं शास्त्रीय दृष्टि से सर्वथा सिद्ध है।
दूर-दूर से श्रद्धालु मां शूलिनी के चरणों में नमन करने के लिए सोलन पहुंचते हैं। सोलन में मां शूलिनी को समर्पित मंदिर जन आस्था का केन्द्र है। मान्यता है कि मां शूलिनी सभी प्रकार के दुःखों का हरण कर जन-जन को स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता प्रदान करती हैं। जनश्रुति के अनुसार मां शूलिनी को विभिन्न महामारियों का नाशक भी माना जाता है।
कोविड-19 के कारण लगभग 06 माह तक जन सुरक्षा की दृष्टि से सभी मंदिरों को बंद रखने के बाद प्रदेश सरकार के निर्णय की अनुपालना में अब सोलन की अधिष्ठात्री मां शूलिनी का मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। केन्द्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा जारी मानक परिचालन प्रक्रिया के अनुसार मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति प्रदान की गई है। हालांकि जन सुरक्षा के दृष्टिगत मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की अनुमति नहीं है। किन्तु जब भी परिस्थितियां अनुकूल होंगी तो श्रद्धालुओं को माता शूलिनी के मंदिर में पूर्ववत सभी धार्मिक क्रियाएं पूर्ण करने की अनुमति प्रदान की जाएगी।
वर्तमान में माता शूलिनी मंदिर में जिला प्रशासन के प्रयासों से सभी व्यवस्थाएं सुचारू चल रही हैं और श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा है। सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर में विभिन्न व्यवस्थाएं सुनिश्चित बनाई गई हैं।
जब मंदिर मंे प्रसाद चढ़ाना आरम्भ किया जाएगा तो सोलन वासियों के लिए यह हर्ष का विषय होगा कि माता शूलिनी के मंदिर में अर्पित किया जाने वाला प्रसाद ‘भोग’ के तहत प्रमाणीकृत होगा।
‘भोग’ अर्थात ईश्वर को आनंदपूर्ण स्वच्छ चढ़ावा। यह एक प्रकार का प्रमाण पत्र है जो भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा प्रदान किया जाता है। भोग का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को पूजा के उपरांत मिलने वाले प्रसाद की गुणवत्ता एवं स्वच्छता सुनिश्चित बनाना है। मंदिर के आसपास प्रसाद विक्रय करने वालों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है।
इन प्रयासांे से जहां माता शूलिनी मंदिर स्वच्छता एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से सभी के लिए सुरक्षित बना है वहीं भविष्य में भोग के तहत होने वाले प्रसाद वितरण से मंदिर के स्वर्णिम इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ेगा जो कोविड-19 के समय एवं तदोपरांत लोगों को जागरूक करने का साधन भी बनेगा।