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सफलता की कहानी
खड्डी से पूरे परिवार को पालती है कमला
बुनाई एक कला नहीं, बल्कि जीने का साधन है
कमला अब 60 साल की हो गई है। उसके परिवार से कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं है। होश संभालते ही खड्डी को जीने का सहारा बना लिया। धीरे-धीरे परिवार बढ़ता गया और जिम्मेवारियां भी बढ़ गई। समाज में प्रतिष्ठिा के साथ जीवन यापन करने के लिए एक अच्छा सा मकान भी बनाना था। पारम्परिक और सस्ती सी खड्डी किस तरह से कमला और उसके परिवार के लिए वरदान बन गई, आईए सुनते हैं कमला की जुबानी।
कुल्लू-मनाली के मध्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नग्गर स्थित राॅरिक आर्ट गैलरी के साथ लगते शरण गांव की रहने वाली कमला का कहना है कि यह गांव सदियोें से बुनकरों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहां हर घर में खड्डी मिल जाएगी और गांव की लगभग सभी महिलाएं बुनाई का काम करने में पारंगत हैं। गांव के लोगों ने आज भी अपने पुरखों की परम्पराओं को जिंदा रखा है। गर्म वस्त्रों की बहुतायत में बुनाई का यह भी एक कारण है कि इलाके में सर्दियों में बहुत ठंड पड़ती है।
कमला बताती है कि वह खड्डी पर बुनाई का कार्य नियमित तौर पर करती है। इसके साथ-साथ वह मवेशियों की देखभाल तथा अन्य घरलेू कार्यों का भी निष्पादन करती है। वह दोडू, पट्टू, स्टाॅल तथा गर्म वस्त्रों के लिए पट्टी की बुनाई करती है। पूरे परिवार को गर्म वस्त्र हर साल इसी खड्डी मंे बनते हैं। ऊनी दोडू जिला की महिलाओं का पारम्परिक परिधान है जो सर्दी से बचाने के साथ साथ बहुत खूबसूरत भी दिखता है। इसके लिए बहुत सारी पट्टी लगती है जिसे बाजार से खरीदना उसके परिवार के लिए मुमकिन नहीं।
कमला का कहना है कि नग्गर घाटी में हमारे देश के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी टूरिस्ट आते हैं और वे हाथ से बुनी हुई वस्तुओं को बहुत पंसद करते हैं। वह अपने उत्पादों को बेचकर अच्छा पैसा कमा लेती है। इसी खड्डी से कमला ने अब एक अच्छा सा घर भी बना लिया है।
वह नई पीढ़ी से बुनाई की इस परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। विशेषकर वह लड़कियों से कहना चाहती है कि उन्हें दूसरे घर जाना होता है। यदि वे इस कार्य में पारगंत होंगी तो अच्छे से अपना और परिवार का भरण-पोषण कर सकती हैं। नौकरी के लिए इधर उधर भटकने से कहीं अच्छा है अपने घर में बैठकर बुनाई का काम करना और इससे अच्छी खासी कमाई हो जाती है।
कमला बताती है कि उनके गांव को अब हैण्डलूम क्राॅफ्ट पर्यटन गांव के तौर पर विकसित करने के लिए देश के तीन गांवों में चुना गया है। शरण गांव के लोगों के लिए यह गर्व की बात है और इसके लिए वह सरकार का धन्यवाद भी करना चाहती है। उसका मानना है कि शरण गांव एक ऐतिहासिक गांव है जहां 500 साल तक पुराने मकान अभी भी जस के तस हैं और गांव में अनेक देवी-देवताओं का वास है। पुरानी शैली के इन मकानों को देखने के लिए अनेकों सैलानी यहां आते हैं। कमला का मानना है कि सरकार ने हैण्डलूम के लिए इस गांव का विल्कुल सही चयन किया है और यहां के लोगों के डीएनए में ही बुनाई का काम है। वह कहती है कि शरण गांव बहुत जल्द सैलानियों के लिए सबसे पंसदीदा स्थल बनकर उभरेगा और गांव के लोग और अधिक सम्पन्न होंगे