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किन्नौर जिला का युवा प्रगतिशील बागवान गेवा शंकर बना युवाओं का रोल-माॅडलः-
जनजातीय किन्नौर जिला की जलवायु में विविधता होने के कारण यहां पर सभी प्रकार के फलों व सब्जियों का उत्पादन संभव है। मोटे तौर पर हम किन्नौर जिला को जलवायु की दृष्टि से 2 भागों में बांट सकते हैं। किन्नौर जिला के निचले क्षेत्रों की जलवायु जहां सम-सितोष्ण है वहीं उपरी क्षेत्रों की जलवायु शुष्क-शितोष्ण है जिस कारण बागवानी फसलों जैसे सेब, बादाम, अखरोट, नाशपति, अंगूर, चेरी तथा प्रूण की खेती के लिए जिले की जलवायु बहुत ही उपयुक्त है। इसी जलवायु के कारण आज जिला बागवानी क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा है।
राज्य सरकार व प्रदेश सरकार द्वारा भी जिले में बागवानी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं तथा अनेक योजनाएं आरंभ की गई है। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा जिले में सेब की विदेशी किस्मों को बढ़ावा देने व सेब के उच्च-सघन बागीचे तैयार करने के लिए 50 करोड़ रुपये की एक परियोजना को मंजूरी दी गई है। जिले में वर्तमान में 12,633.86 हैक्टेयर क्षेत्र में बागवानी की जा रही है।
प्रदेश सरकार के प्रयासों व स्थानीय लोगों, विशेषकर युवाओं का बागवानी के प्रति और अधिक रूझान बढ़ा है। जिले में अब पारम्परिक सेब बागीचों के साथ-साथ युवाओं में विदेशी आयातीत सेब के पौधों के बागीचे लगाने की और रूझान बढ़ा है जिसमें किन्नौर जिला के रिकांग पिओ स्थित डाॅ. वाय.एस. परमार वानकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र की भी अहम भूमिका है। अनुसंधान केंद्र द्वारा जिले के कल्पा में एक विदेशी सेब किस्मों का हाई-डैनस्टी बागीचा लगाया गया है जो लोगों को विदेशी सेब उगाने के लिए प्रेरित करने में सहायक सिद्ध हुआ है। जिले के कई बागवान आज विदेशी किस्म के आयातीत सेब के बागीचे लगाकर प्रदेश सहित स्वयं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर रहे हैं।
ऐसे ही बागवानोें में शामिल है जिला के उरनी गांव के युवा प्रगतिशील बागवान गेवा शंकर जिन्होंने लोगों के इस मिथक को भी तोड़ा है कि बागवानी के लिए बहुत अधिक जमीन की आवश्यकता होती है। गेवा शंकर नेगी ने मात्र 16 बिसवे जमीन पर 500 ईटली से आयातीत सेब का बागीचा लगाया है। यही नहीं उन द्वारा लगाए गए बागीचे से मात्र एक वर्ष बाद ही फसल आनी भी शुरू हो गई है।
गेवा शंकर का कहना है कि उन्हें बचपन से ही बागवानी का शौक था परंतु जमीन कम होने व अन्य संसाधनों की कमी के कारण वे अपना बागवानी का शौक पूरा नहीं कर पाए थे। उनका कहना है कि कुछ वर्ष पूर्व उनकी चगांव के एक प्रगतिशील बागवान से भेंट हुई जिन्होंने उन्हें विदेशी आयातीत सेब पौधों के बागीचे तैयार करने के लिए प्रेरित किया। यहीं से प्रेरित होकर उन्होंने यू-ट्यूब पर भी सेब से संबंधित जानकारी हासिल की व साथ ही किन्नौर स्थित डाॅ. वाय.एस. परमार वानकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय के अनुसंधान के वैज्ञानिकों से भी सम्पर्क स्थापित कर जानकारी हासिल की।
उन्होंने इस दौरान नौणी स्थित बागवानी एवं वानकी विश्वविद्यालय का भी दौरा किया तथा आयातीत सेब उगाने तथा सेब की किस्मों के संबंध में जानकारी हासिल की जो उनके क्षेत्र की जलवायु के उपयुक्त हो और उन्हें अच्छी फसल दे सकें। उनका कहना है कि उन्होंने शिमला जिला के कोटगढ़-कोटखाई आदि क्षेत्रों के प्रगतिशील किसानों से संपर्क साध कर उनके बागीचों को भी देखा। यहीं से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी 16 बिसवे के एक खेत में एम-9 रूट-स्टाॅक पर किंग-रूट व डार्क बैरिंग-गाला के 500 पौधे लगाए। उन्होंने यह पौधे इटली की गारीबा व जैन्जी नर्सरी से मंगवाए जिस पर लगभग 3 लाख रुपये व्यय हुए।
गेवा शंकर ने कहा कि इन किस्मों के पौधों के लिए सिंचाई सुविधा होना आवश्यक है। इसी के चलते उन्होंने एक टैंक बनवाया तथा उसके माध्यम से सभी पौधों को ड्रिप-सिंचाई प्रणाली से जोड़ा। उनका कहना है कि इन पौधों के लिए स्पोर्ट की अति आवश्यकता रहती है जिसके लिए उन्होंने लोहे के एम-एस पाईप भी लगाए।
गेवा शंकर का कहना है कि एक वर्ष पूर्व लगाए गए इन पोधों ने फसल देना आरंभ कर दिया है तथा प्रथम वर्ष में ही लगभग 150 सेब के बाॅक्स होने की उम्मीद है। उनका कहना है कि कई पौधों में तो सेब के 80-80 दाने तक लगे हुए हैं। उनका युवाओं को भी संदेश है कि वे अल्ट्रा-हाई डैनस्टी विदेशी किस्म के सेब बागीचों को लगाने के लिए आगे आएं। इसमें जहां बागीचे लगाने के लिए कम बागीचे की आवश्यकता पड़ती है वहीं बागीचे के कम जमीन में लगे होने के कारण देख-रेख में भी कम खर्चा आता है।
उनका कहना है कि पुराने किस्म के पौधे लगाने के लिए जहां जमीन भी अधिक चाहिए होती है वहीं पुराने किस्म के पौधे 8 से 10 साल में फसल देना आरंभ करते हैं जबकि रूट-स्टाॅक पर लगाए गए विदेशी आयातीत पौधे मात्र एक साल में ही फसल देना आरंभ कर देते हैं। इससे इस क्षेत्र में कार्य करने वाले बागवानों को शीघ्र पैसा आने के चलते आर्थिक कठिनाई से भी नहीं जूझना पड़ता है।
उनका कहना है कि आज प्रदेश सरकार ने भी सेब की आयात किस्मों के सघन बागीचों को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं व कार्यक्रम आरंभ किए हैं जिसका बागवान लाभ उठा सकते हैं।
युवा गेवा शंकर द्वारा बागवानी क्षेत्र में किए गए सराहनीय कार्य के लिए हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के दिन उन्हें जिला प्रशासन किन्नौर की और से ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज व कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर द्वारा सम्मानित भी किया गया।
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